by Alka Sharma Bose
किसी साहित्यकार के सरोकार बृहत्तर दायरे तक व्याप्त हों तो वे उसकी रचनाओं में स्वयमेव उतर आते हैं । कविता-संग्रह ‘तेरे आने की खबर’ कवयित्री अलका शर्मा बोस के इन्हीं सरोकारों का स्वच्छ दर्पण दिखाई देता है । इसमें कवयित्री ने प्रेम, देश-प्रेम, प्रकृति-चित्रण, मानवीय संबंध, दाम्पत्य संबंध, मानवता व पशुता, पुरुष व नारी मनोविज्ञान, पर्यावरण की चिंता, कोरोना महामारी व लोकडाउन की स्थितियों आदि प्रमुख विषयों को अपनी लेखनी द्वारा मौलिक, सूक्ष्म व सुंदर कल्पना के ताने-बाने से बुना है। इनकी अनुभूति की गहराई की छाप इस संग्रह में स्थान-स्थान पर देखी जा सकती है ।
इस संग्रह में कवयित्री की मूल संवेदना प्रेम है । प्रेम की भावभूमि पर अंकुरित-पल्लवित रचनाओं में इनकी व्यथा, उल्लास, आशा, निराशा, समर्पण, संस्कार, धैर्य, मीठे उपालंभ, करुणा, आत्मानुभूति, आत्माभिव्यक्ति, क्षोभ, जड़ता, बेचैनी, संयोग, वियोग, स्मृतियाँ, प्रेम का अत्यधिक नशा आदि इनकी कवित्व-प्रतिभा रूपी निर्झरिणी के मुहाने से रिसकर व छनकर उद्घाटित हुए हैं । कवयित्री की प्रेमपरक रचनाएँ सतही न होकर अनुभव व अनुभूति की तलहटी को छू रही हैं । इन रचनाओं में कवयित्री व्यष्टि से समष्टि की ओर, अहं से वयं की ओर, अंत: से बाह्य तथा बाह्य से अंत: की ओर उन्मुख दिखाई देती है । प्रेम की पीड़ा से जनित स्थितियों का सहज, स्वाभाविक व सुघड़ चित्रण कवयित्री की खूबियों में सम्मिलित है ।
इस संग्रह की अधिकतर रचनाओं में हृदय के आह्लाद, मानसिक द्वंद्व व भावुक अश्रु-सलिला से आप्लावित-सिंचित प्रेम की जड़ें कवयित्री की चेतना तथा अंतस्तल में सुदूर तक व्याप्त प्रतीत होती हैं । रचनाकर की प्रेमपरक अनुभूति का क्षेत्र वायवीय, काल्पनिक या कोरे आकर्षण का पाश न होकर ‘प्रेम पियाला जो पिये, शीश दक्षिणा देय’ वाली कबीर की वाणी का न केवल अनुगमन करता है बल्कि भावों के केंद्र में अक्षरश: प्रतिबिम्बित होता हुआ भी दिखाई देता है । ‘गहरा बंधन’ कविता में अलका शर्मा बोस ने वाद-विवाद, वैचारिक टकराव, दृष्टिकोण के वैषम्य तथा रुचियों के विपरीत ध्रुवों को साधकर प्रेम का जो परिपाक तैयार किया है, उसके पश्चात की स्थिति में संबंध की गहराई व निखार की परिणति प्रांजल रूप में अभिव्यंजित की है। इन रचनाओं में कवयित्री जितनी मानवीय प्रेम के प्रति संवेदनशील दिखाई देती है, उतनी ही देश-प्रेम तथा प्रकृति-प्रेम के प्रति संजीदा और समर्पित है ।
‘ए मेरे दोस्त’ में जहाँ कठिन व दमघोंटू परिस्थितिजन्य वेदना को साकार किया गया है वहीं ‘ये यादें’ कविता में कवयित्री ने मानो यादों के बहाने दिल की पीड़ा को शब्दों की अंगुली पकड़कर चलना सिखा दिया हो । ‘सर्द हवाएँ ’, ‘बरस गए तुम’, ‘वो पल’, ‘मन के मयूर’, ‘कमसिन रात’ आदि रचनाओं में व्यक्तिगत पीड़ा को सर्वपीड़ा से संबद्ध करना, अंत: प्रकृति का बाह्य प्रकृति से मेल, ज़िंदगी में आई सुख की बयार को किसी की नज़र लगने की बात सोचकर सशंकित होना, प्रेम के अहसास को भरपूर जीकर उससे घटित होने वाले सुखद परिवर्तनों का सुंदर चित्रण, प्रकृति के आश्रय में भावनाओं को अभिव्यक्त करते हुए अभिलाषा और कल्पना का अद्भुत संगम दर्शनीय है । ‘देखा उन्होंने’, ‘जादुई अहसास’, ‘तेरे आने की ख़बर’, ‘जब तुमने देखा’, ‘मेरे लिए’, ‘देखा उसने’ आदि रचनाओं में कवयित्री ने सच्चे प्रेम की अनुभूति से सराबोर दिल की दशा को रसधारा के समान कविता की गागर में उड़ेल दिया है । इनमें निराशा के रेगिस्तान में प्रेम व आशा के शीतल जल की फुहारों के परिणामस्वरूप हुए परिवर्तनों की सहज झलक देखी जा सकती है । मधुर कल्पना के शहद में सनी कविता ‘तुम और मैं’ में प्रेमी-प्रेमिका के विभिन्न रूपों को जिस प्रकार अभिव्यक्त किया गया है, उससे कवयित्री की काव्य-प्रतिभा का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है । ‘तुम क्यों आए’ कविता में बिछोह का भय व भावी पीड़ा से उपजे अनेक प्रश्न प्रियतम से उत्तर मांगते हैं तो ‘हे मेरे प्रभु’ रचना में रहस्यवाद के दर्शन होते हैं। ‘ज़िंदगी’ कविता में संतरे की फाँक के माध्यम से ज़िंदगी के विभिन्न अनुभवों को कल्पना,लय तथा भाषा के सुंदर परिधान से युक्त पुष्पित व सुवासित रूप में व्यक्त किया गया है ।
प्रेम से इतर इसमें रिश्तों के खोखलेपन, स्त्री की स्थिति, कोरोना व लॉकडाउन के जन-जीवन पर पड़े दुष्प्रभावों, देश की उन्नति की चाहत, पुरुष द्वारा नारी को दी जाने वाली यातनाएँ, प्रकृति का आलंबन व उद्दीपन रूप में चित्रण, समाज की विसंगतियों, अतीत की सुनहरी स्मृतियों, दाम्पत्य जीवन की जटिलताओं, सांप्रदायिक विद्वेष, मनुष्य के मन की विभिन्न दशाएँ, क्रोध व अहं, रिश्तों में पनपे अविश्वास व भ्रांतियों आदि का सुंदर चित्रण भी कवयित्री के चिंतन व लेखन का अंग बना है ।
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