by Ramchandra Ramsnehi
भाव सुभाव भरे मन में यह, प्रेषित होत रह सनमुख तोहे, अनहद रूप सजे सब काव्य जो, नाद स्वरूपित काव्य जो सोहे, सौम्य, सुगम अरु स्व भाव से, काव्य त्रिवेणी अति मन मोहे।’ प्रस्तुत पुस्तक सिर्फ़ कल्पनाशील भावों का प्रतिबिम्ब मात्र नहीं है, यह कभी यथार्थ के साथ हमें झूला झुलाती है तो कभी राष्ट्रवाद को धारण कर तांडव करने के लिए प्रेरित करती है। सौम्यता, सरलता, स्वचिंतन की ऐसी त्रिवेणी इसमें बहाने की कोशिश की गयी है जिससे हर मानव इसमें अपने आप से जुड़ाव महसूस करें। जहां तक मेरा प्रश्न है, मैंने सिर्फ़ इस पुस्तक के भावों को आप के समक्ष परोसने का कार्य किया है परंतु, साधक वे सभी पाठक हैं जो इसे पढ़ अपने ह्रदय की अनुभूति को मेरे साथ साझा करेंगे।
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